आमला से गांव देहात की तरफ जाते हुए मुझे अचानक ही एक घाना दिखाई दिया। किसी छोटे स्तर पर बनाए गए चीनी मिल को घाना, इस क्षेत्र में कहा जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा पंजाब के कुछ क्षेत्रों में इसी स्तर के चीनी मिलों को चरखी के नाम से जाना जाता है।
अचानक ही मेरी नजर उक्त घाने में काम करने वाले एक व्यक्ति पर पड़ी। इस व्यक्ति ने कुर्ता पायजामा पहना हुआ था। कुर्ते पजामे को पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजकीय पोशाक कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग हर एक व्यक्ति कुर्ते पजामे की पोशाक ही धारण करके रहता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहने जाने वाले इन कुर्ते पजामे की बनावट भी लगभग एक जैसी रहती है। भले ही कोई आम आदमी हो, नेता हो, अमीर हो, गरीब हो, परंतु, कुर्ते पजामे की बनावट लगभग सभी व्यक्तियों की एक जैसी रहती है। हालांकि कपड़ों के रेशे, शत प्रतिशत सभी व्यक्तियों के अलग-अलग पाए जाएंगे।
खैर छोड़िए, अब आज की बात को आगे बढ़ाते हैं। इस व्यक्ति द्वारा पहने गए कुर्ते पजामे की बनावट को देखते ही मैं समझ गया कि यह व्यक्ति सहारनपुर या इसके आसपास के ही किसे जिले से संबंध रखता है। अनायास ही मन हुआ कि चलो चल कर बात की जाए।
उक्त चीनी मिल में कई सारे लोग गुड़ बनाने की प्रक्रिया में व्यस्त थे। मैंने बातचीत शुरू करने के उद्देश्य से उनमें से एक व्यक्ति से पूछा कि क्या थोड़ा गर्म गुड़ खाने को मिलेगा। मेरे आग्रह का उस व्यक्ति ने खड़ी बोली में जवाब दिया एवं मुझको गुड़ खाने के लिए आमंत्रित किया। खड़ी बोली के लहजे से ही मैं समझ गया कि यह व्यक्ति मुजफ्फरनगर का है। मैंने भी उस व्यक्ति से अपने ठेठ खड़ी बोली वाले लहजे में बातचीत करनी शुरू कर दी। उनके पास के जिले का होने के कारण इन लोगों ने मुझसे बहुत ही आत्मीयता से बात करी। लोगों ने इसी चीनी मिल में अपने रहने का इंतजाम भी किया हुआ है। शांत क्षेत्र होने के कारण यहां जंगल में रहने में इतना डर नहीं है। वैसे भी इन चीनी मिलों में लगभग हर समय 50 से 100 लोग मौजूद रहते हैं तो इतने लोगों की उपस्थिति होने के कारण किसी बात का भय नहीं रहता।
सर्वप्रथम इन लोगों ने मुझको बोला कि मैं थोड़ा गन्ने का रस लूं। गन्ने से रस निकालने के लिए इन चीनी मिलों में एक मशीन लगी रहती है जिसको की बिजली या किसी इंजन के माध्यम से चलाया जाता है। पूछने पर इन लोगों द्वारा बताया गया कि मध्यप्रदेश के इस क्षेत्र में इस तरह की मशीनों का साइज हमारे क्षेत्र की तुलना में थोड़ा बढ़ा है। हालांकि इन मशीनों को देखकर कई लोग बोल सकते हैं कि इन छोटे स्तर के चीनी मिलों से निकाला गया रस शायद स्वास्थ्य के लिए इतना अच्छा ना हो क्योंकि साफ सफाई का उतना ध्यान यहां नहीं दिया जाता। हालांकि यही काम बड़े चीनी मिलों में पर्दे के पीछे होता है तो वहां पर साफ सफाई के बारे में इतने ज्यादा प्रश्न हम लोगों के दिमाग में नहीं आएंगे। इस चिनीमिल में रस निकालने के लिए लगाई गई मशीन का फोटो मैं नीचे दे रहा हूं।
मशीन के पास किसी भी तरह का कोई गिलास न हो पाने की वजह से मैं रस का सेवन नहीं कर पाया।
लौट कर मैं वापस इन्हीं लोगों के पास आ गया जो गुड़ बनाने में व्यस्त थे। थोड़ी ही देर में यहीं पर एक आंटी जी भी आ गई। ये स्वयं भी मुजफ्फरनगर की ही रहने वाली थी। इन्हीं दोनों पति पत्नी ने मिलकर इस चीनी मिल को चलाने का ठेका लिया हुआ था। इन आंटी जी ने एकदम से मेरे लिए चाय बनानी शुरू कर दी और बड़े ही आत्मीयता से मुझको चाय दी। आंटी जी द्वारा दी गई चाय का फोटो मैं नीचे दे रहा हूं।
थोड़ी ही देर में इस चीनी मिल को चलाने वाले मुख्य ठेकेदार भी आ गए। इनसे मेरी गन्ने के मूल्य एवं चीनी मिल से संबंधित कई विषयों पर बातचीत हुई।
उन्होंने बताया कि चीनी मिल से संबंधित कार्यों में यह लगभग पिछले 15 सालों से लगे हुए हैं जिनमें से लगभग 13 वर्षों से यह मध्य प्रदेश क्षेत्र में ही काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इन छोटे चीनी मिलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिससे कि इस क्षेत्र में भी कंपटीशन बहुत ज्यादा हो गया है।
उन्होंने यह भी बताया कि गन्ने का मूल्य लगभग यहां पर ₹300 प्रति क्विंटल है जिनमें से ₹40 रूपये प्रति क्विंटल, गन्ने की छिलाई एवं ढुलाई में यह ठेकेदार महोदय किसानों से काट लेते हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र के किसानों को गन्ना ₹260 प्रति क्विंटल का भाव देता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अभी गन्ने का भाव लगभग ₹325 क्विंटल है। ₹325 क्विंटल गन्ने के भाव में किसान द्वारा गन्ने की छिलाई एवं ढुलाई का खर्चा खुद ही वहन करना पड़ता है। गुड़ का भाव इस क्षेत्र में लगभग 24 से ₹25 प्रति किलो है वहीं पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वर्तमान में गुड़ का भाव लगभग 30 से ₹32 प्रति किलो है।
हालांकि चीनी मिल में गुड नहीं बनाया जा रहा था बल्कि राब बनाई जा रही थी। गुड बनाने के लिए के लिए सर्वप्रथम गन्ने से रस निकाला जाता है एवं पाइपों के माध्यम से उनको लोहे की बनी कढ़ाई में लेकर आए जाता है।
इन कढ़ाईयों में गुड़ को गर्म किया जाता है। गर्म करने के लिए आग, गन्ने से रस निकालने के बाद जो सूखा गन्ना बचाता है, उसी को जलाकर लगाई जाती है। इसी सूखे गन्ने को गांव की भाषा में खोई भी कहा जाता है। चूंकि यह खोई गन्ने के रस के कारण थोड़ी गीली होती है, अतः इसे पहले कुछ दिनों तक धूप में सुखाया जाता है। नीचे दिए गए गर्म होते गन्ने के रस को दिखाया गया है।
इसी प्रकार नीचे दिए गए एक चित्र में कढ़ाई के नीचे आग जलाने के लिए खोई वाला ईंधन जलाते हुए एक व्यक्ति को देखा जा सकता है।
गन्ने के रस को लगभग सुनहरा लाल होने तक गर्म किया जाता है, एवं उसके पश्चात किसी दूसरे बर्तन में इस रस को ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है।
जब इस गन्ने के रस की VISCOSITY थोड़ी ज्यादा बढ़ जाती है, तो इसे राब कहा जाता है। यही राब और ठंडा होकर, ठोस हो जाती है एवं गुड़ कहलाती है।
इस मिल में अभी गुड़ नही बनाया जा रहा था और सिर्फ राब ही बनाई जा रही थी। इस राब को बाद में टिन के कनस्तर में भरकर शराब बनाने वाली डिस्टलरी को बेच दिया जाता है।
गन्ने के रस से , उबलने के दौरान, गंदगी दूर करने के लिए, एवं अच्छा रंग लाने के लिए कुछ केमिकल्स या भिंडी जैसे प्राकृतिक चीजों को भी मिलाया जाता है।बाहर निकलने वाली गंदगी को कुछ बोरों में भर के रख लिया जाता है। इसी गंदगी को सुअर पालन करने वाले लोग अपने पालतू सुवरों को खिलाने के लिए इन मिल मिल मालिकों से खरीदते हैं।
नीचे दिए गए चित्र में आप, एक दूसरे बड़े बर्तन में ठंडी होती राब को देख सकते हैं।
शाम बहुत घिर आई थी। मुझे भी इन लोगों से बात करते हुए काफी समय हो गया था। चलते चलते इन लोगों ने मुझको बहुत प्रेम पूर्वक राब के रूप में एक उपहार भी दिया। हम लोगों का आपस में फोन नंबर का भी आदान प्रदान हुआ।
मैं इन लोगों की किसी भी प्रकार की सहायता तो कर नही सकता हूं, लेकिन फिर भी अनायास ही मैं बोल कर आया कि किसी तरह की मदद की अगर आवश्यकता पड़े तो मुझे याद करें।इन लोगों ने भी मुझको दोबारा किसी अन्य दिन वापिस आने का न्योता दिया।
इस प्रकार मेरी इस छोटी सी यात्रा को मैंने समाप्त किया और वापिस घर की तरफ बढ़ चला।
इति सिद्धिम।
उत्तम भाषा शैली.. ग्रामीण परिवेश का सुनहरा विवरण..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद।
Deleteअपने क्षेत्र के लोगो को मिलकर अपनापन का अहसास होता है जब आप घर से दूर कही रह रहे हो! अच्छा वर्तांत के साथ ही अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteहृदय की गहराइयों से आभार।
Deleteबहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर।
Deleteज्ञानवर्द्धक एवं सुंदर लेख👍👍
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteहमने घर की सलामती के लिए
ReplyDeleteख़ुद को घर से निकाल रखा है
धन्यवाद। बहुत ही सुंदर लाइन।
DeleteBhut khud likha h pdh kr lga jse hum sath me ras aur chai k anand le rhe h .Apne shr ya pas k vayaktiyo se milkr anjane shr me apnepan ka ahsas hota h .Ase hi nye nye vayaktiyo se milkr unke anubhav hmse sajha krte rhe . Aayushman bhav✋
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार।
DeleteApne ghr se dur apne sehar ya aas paas ke vykatiyo se milkr apnepan ka ehsaas hota h ...is vlog ko pdhkr pta chalta h ki lekhak bht hi milansaar vyakti h aur chai ka shokheen bhi
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