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सिपाही कमल राम गुर्जर

सिपाही कमल राम गुर्जर



सिपाही कमल राम गुर्जर ब्रिटिश सेना में विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के भारतीय थे। 
ब्रिटिश राज के समय से ही विक्टोरिया क्रॉस एक बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय एवं शूरवीरों को दिया जाने वाला पुरस्कार है। ब्रिटिश पुरुस्कारों के सूचकांक में यह पुरस्कार सबसे ज्यादा महत्व रखने वाला है। यह पुरस्कार युद्ध के समय, दुश्मन के सामने अत्यधिक वीरता दिखाए जाने पर ब्रिटिश सेना के सैनिकों को दिया जाता है। यह पुरस्कार मरणोपरांत भी दिया जाता है। भारत जैसे देश जो पहले ब्रिटिश सत्ता के अधीन थे, के सिपाही भी इस पुरस्कार को पाने के अधिकारी थे। जैसे जैसे देशों ने ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्रता हासिल की, वैसे वैसे इन देशों ने अपने पुरुस्कार अलग से स्थापित कर लिए और इन स्वतंत्र देशो में विक्टोरिया पुरुस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरुस्कारों की लोकप्रियता घटती चली गयी। जहां एक तरफ स्वतंत्रता आंदोलन ने राजनीतिक चिंतकों को देश मे लोकप्रिय बनाया, वहीं दूसरी तरफ इन आंदोलनों ने ऐसी कोई भी चीज़ जो ब्रिटिश सत्ता से संबंधित हो, उसको देश भर अलोकप्रिय कर दिया। सिपाही कमल राम गुर्जर जैसे वीर भी इससे अछूते न रहे। इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि देश ने अपने फ़र्ज़ एवं कृतव्यों को निष्ठा से निभाने वाले इन शूरवीरों को भुला दिया। इन वीरों की गलती बस इतनी थी कि ये शायद बहुत जल्दी जन्मे थे और इन वीरों को अपनी वीरता दिखाने के लिए ब्रिटिश सेना से जुड़ना पड़ा था । 
विक्टोरिया क्रॉस इंग्लैंड के राज परिवार द्वारा बकिंघम पैलेस में दिया जाता रहा है। 1856 में आरम्भ होने के पश्चात यह पुरस्कार अब तक 1358 लोगों को ही दिया है। द्वितीय युद्ध के पश्चात तो यह केवल 15 ही बार दिया गया है। कहा जाता है कि इस पुरस्कार में प्रयोग होने वाली धातु दुश्मन देश की जब्त की हुई एक तोप से लिया जाता है। पुरुस्कार की लोकप्रियता का आलम यह है कि यह पुरस्कार 3.5 करोड़ रुपये तक मे लोग खरीद चुके हैं। यद्यपि ऐसा कोई नियम नही है, लेकिन परंपरागत रूप से सभी वर्दीधारी सैनिक, चाहे वो किसी भी रैंक के हों, विक्टोरिया क्रॉस धारक सैनिक को सैल्युट करते है। वर्दी धारण करने वाले लोगों में सैल्युट सम्मान एवं गर्व की बात समझी जाती है। ब्रिटिश कानूनों में तो यहाँ तक कहा गया है कि अगर विक्टोरिया क्रॉस धारक किसी गैरकानूनी काम मे भी लिप्त पाया जाता है तो भी वो अपने विक्टोरिया क्रॉस को अपने साथ रखने का अधिकारी होगा। इन सब बातों से हम समझ सकते हैं कि विक्टोरिया क्रोस पुरूस्कार कितना ज्यादा प्रतिष्टित पुरुस्कार है।
तो आदरणीय सिपाही कमल राम गुर्जर जी को इसी प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया था।






 ब्रिटिश सेना में यह पुरुस्कार प्राप्त करने वाले वो दूसरे सबसे कम उम्र के भारतीय थे। इनका जन्म राजस्थान के करौली जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ये 8 वी पंजाब रेजिमेंट की तीसरी बटालियन के साथ मोर्चे पर तैनात थे। वर्तमान में यह रेजिमेंट पाकिस्तान की बलोच रेजिमेंट में तब्दील हो गयी है।
युद्ध के दौरान इनकी तैनाती इटली की गारी नाम की एक नदी के किनारे पर थी जिस पर जर्मनी की सेना अपनी पोस्टों से गोलाबारी कर रहे थे। इस गोलाबारी को रोकने का एकमात्र उपाय इन पोस्टों को ढेर करना ही था। जब इच्छापूर्वक कार्य करने के लिए सैनिकों से पूछा गया तो सिपाही कमल राम गुर्जर ने सहर्ष यह कार्य करने के लिए हामी भर दी। अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्होंने न सिर्फ 2 पोस्टों को खत्म किया अपितु तीसरी पोस्ट को खत्म करने में मुख्य योगदान दिया। इस कार्य मे कमल राम जी ने एक जर्मन सेना अधिकारी को भी मार गिराया।
आज़ादी के बाद ये सूबेदार की रँक तक पहुंचे एवं उसके बाद वो सेवानिवृत हो गए।
देश एवं समाज ऐसे लोगों का हमेशा ऋणी रहेगा।

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