लगभग ०६ महीनों बाद आज दिनांक १५ अगस्त २०२१ को घर जाने का फिर से मौका मिला है। छुट्टियां देने में वरिष्ठ अधिकारी गण एक मुझ जैसे सामान्य से कर्मचारी को भी अंदेशा दिला देते हैं कि मेरे बिना कार्यालय में जैसे सब कुछ जैसे समाप्त हो जाएगा। हालांकि ऐसा कुछ भी आम दिनों में नजर नहीं आता है जब प्रतिदिन उनके कोपभजन के शिकार हम जैसे साधारण से कर्मचारी होते रहते हैं।
देश की गिरती हुई अर्थव्यवस्था के अपराधबोध से ग्रस्त हर एक सरकारी कर्मचारी छुट्टी लेने के समय हो जाता है।
खैर ठीक ऐसे ही विचारों के साथ, लगभग ६ महीने बाद हमें भी छुट्टी मिली है, और आमला स्टेशन से हमारी यात्रा आरंभ होती है।
२. यात्रा का दूसरा पड़ाव भी आ गया देखते देखते। स्टेशन का नाम है बेतुल। जिला मुख्यालय भी है। Corona ki वजह से स्टेशन पर रहने वाली चहल पहल गायब है। इक्का दुक्का लोग प्लेटफॉर्म पर बैठे दिखाई पड़ जाते हैं। स्टेशन पर बने छोटे छोटे से स्टॉल भी सूने ही पड़े हुए हैं।
३. बैतूल से इटारसी के बीच का रास्ता सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच से होकर निकलता है। रास्ते में कहीं पर चढ़ाव है तो कहीं पर उतार। ट्रेन की स्पीड भी कमोबेश कम ही रहती है। मोबाइल नेटवर्क इस क्षेत्र में लगभग न के बराबर है। आने वाले समय में शायद स्थिति सुधर जाए। हालांकि नेटवर्क न होने की वजह से लोग कुछ समय के लिए ही सही, किन्तु अपनी मोबाइल स्क्रीन से दूर होकर प्रकृति के इं मनोरम दृश्यों का आनंद ले पाते हैं।
४. घोड़ाडोंगरी नाम के एक छोटे से स्टेशन पर गाड़ी फिर से रुकी है। पीछे कोई भी मकान दिखाई नहीं से रहे हैं। शायद बहुत ही छोटी जगह है। प्लेटफॉर्म भी स्टेशन पर मात्र २ ही बने हैं। इनमे से एक तरफ के प्लेटफॉर्म पर तो किसी तरह की कोई बिल्डिंग बनी हुई भी दिखाई नहीं पड़ रही है। हाल यहां पर भी वैसा ही है। एक दम से सूनापन। कुछेक लोग मास्क लगाए घूम जरूर रहे हैं लेकिन इसे भी शायद चहलपहल तो नहीं ही कह सकते।
5. इटारसी स्टेशन रहा अगला पड़ाव। इटारसी स्टेशन होशंगाबाद जिले की तहसील में स्थित है। स्टेशन रेल नेटवर्क के हिसाब से लगभग भारत का मध्य बिंदु है। ऐसा कहा जाता है कि आप इटारसी से भारत के किसी भी कोने तक कि ट्रेन पकड़ सकते हैं। बात में कितनी सच्चाई है इस पर तो मैंने कभी गौर किया नहीं, लेकिन हां, नेटवर्क के मध्य में होने के कारण, प्रतिदिन शायद सैकड़ों ट्रेन इस स्टेशन से गुजरती होंगी।
इतना भीड़भाड़ वाला स्टेशन होने के कारण, स्टेशन परिसर के बाहर, रेस्टुरेंट एवं ढाबों की भरमार है। बहुत पुराने फूड आउटलेट भी इटारसी रेलवे स्टेशन के बाहर मौजूद है। आप चलती ट्रेन से order दीजिए, और ये रेस्टुरेंट आपको इटारसी में खाना भिजवा देंगे आपकी सीट पर। रेलवे का बड़ा स्टेशन एवं सेना का कोई depot होने के कारण इटारसी तहसील होने के बावजूद भी काफी उन्नत दिखाई पड़ता है। खाने की दुकानें, तहसील होने के बावजूद भी तहसील स्तर की न होकर , जिला मुख्यालय स्तर की कहीं जा सकती है। स्टेशन पर रहते हुए एक फोटो भी स्टेशन का लिया, लेकिन मेरे कोच की अच्छी पोजिशन नहीं होने के कारण, ज्यादा अच्छा नहीं आ पाया।
यात्रा जारी रहेगी।
6. विदिशा स्टेशन को अभी अभी पार किया। भोपाल एवं हबीबगंज भी पार हो चुके हैं। किसी भी स्टेशन पर लिखने योग्य कुछ दिखाई भी नहीं पड़ा। नीरस सी यात्रा स्टेशन के हिसाब से रही। खैर विदिशा एक ऐतिहासिक महत्व का जिला पूर्वकाल से ही रहा है। विदिशा शहर से थोड़े पहले, ऊंची पहाड़ियों के ऊपर कुछ पुरातनकालीन भवनों के अवशेष भी दिखाई पड़े थे ।
ऐतिहासिक महत्व का शहर होने के बाद भी स्टेशन ऐसा कुछ खास नजर नहीं आया। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी भी शायद विदिशा के ही रहने वाले हैं।
७. बीना स्टेशन पर ट्रेन रुकी है। एक चाय हमने लेकर पी । स्टेशन परिसर में आजकल सैंडविच भी मिलना शुरू हो गया है। क्वालिटी के बारे में तो ज्यादा नहीं कहा जा सकता, लेकिन भय तो रहता है कि अच्छे होंगे या नहीं ।
8. घर के नजदीक पहुंच गए हैं। क्षेत्र में मशहूर पॉपुलर के पेड़ चारों तरफ दिखाई पड़ने लगे है। गन्ने के खेत भी चारों ही तरफ दिखाई पड़ रहे हैं। लहलहाती हरियाली चारों तरफ जहां तक नजर जाए।
बहुत सुंदर वर्णन
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