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जवाहर नवोदय विद्यालय बैतूल की एक यात्रा। JNV BETUL

OCTOBER 15, 2021 को विजयदशमी का पावन पर्व था। मुल्ताई जाने का यूंही मन हुआ। कस्बे में घूमते घूमते अहसास हुआ कि भीड़ बहुत कम है। सब कुछ खाली खाली सा नजर आ रहा था। शायद इस क्षेत्र में दुर्गा शक्ति माता की मूर्तियों के विसर्जन का दिन आज था। सभी लोग विसर्जन की क्रियाओं में लगे हुए थे, तो बाजार खाली नजर आ रहे होंगे। एक छोटे से ढाबे पर कुछ खाने का मन हुआ। खाते खाते गूगल मैप पर रास्ते के बारे में पता करते हुए पता चला कि मुल्ताई से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर, बेतुल जिले का नवोदय विद्यालय स्थित है। चूंकि लेखक स्वयं उत्तराखंड के एक नवोदय से पढ़ा हुआ है, तो मन में अकस्मात ही नवोदय को देखने को कौतूहल हुआ। अपनी बाइक पर सवार होकर, हम पहुंच गए नवोदय विद्यालय बैतूल। 

पहुंचने का रास्ता । 
मुल्ताई कस्बे से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर नवोदय स्थित है। पट्टन नाम कि एक छोटी सी जगह है, जिसके नाम पर बेतूल जिले का नवोदय है। जिला मुख्यालय हालांकि नवोदय से कम से कम 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होगा। मुल्ताई से नवोदय का रास्ता बहुत अच्छा है। पठारी क्षेत्र होने के कारण, बरसात के बाद का समय एक अलग तरह की हरियाली इस क्षेत्र में लिए रहता है। बहुत छोटी छोटी घास चारों तरफ दिखलाई पड़ती है। मुल्ताई से पट्टन तक के रास्ते में कुछ छोटे छोटे से गांव भी रास्ते में आते है, हालांकि उनका नाम याद करने की स्थिति में मैं अभी नहीं हूं। मुख्य मार्ग से लगभग 1 किलोमीटर पीछे की तरफ नवोदय स्थित है। नवोदय विद्यालय का एक बड़ा सा गेट मुख्य मार्ग भी लगा हुआ है। 
(मुख्य मार्ग पर स्थित नवोदय जाने का रास्ता)

नवोदय प्रांगण 
नवोदय विद्यालय बैतूल के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने सिर्फ मैदान एवं कुछ ग्रामीण लोगों के खेत हैं। बरसात के बाद का समय होने के कारण चारों तरफ हरी भरी घास का मैदान सा दिखाई दे रहा था। नीले रंग के बोर्ड पर, सफेद रंग से लिखे गए अक्षर, वहीं पुराने दिनों की याद दिलाते प्रतीत हुए। मुख्य द्वार पर ही चौकीदार का लगभग वैसा ही एक कमरा दिखाई पड़ा, जैसा कि उत्तराखंड के हमारे नवोदय में दिखाई दिया करता था। 
मुख्य प्रवेश द्वार के बाईं तरफ एक बास्केटबॉल मैदान स्कूल द्वारा बनाया गया है। हालांकि हमारे नवोदय में यह स्थान अमरूद के एक बेहतरीन बाग के लिए निर्धारित थी, जिसने हमको उन 7 सालों में न सिर्फ कुछ उत्तम अमरूद प्रदान किए, अपितु कुछ बहुत ही उम्दा यादें भी याद रखने के लिए दी। मुख्य द्वार से, कैंपस का रास्ता, अपने विद्यालय के रास्ते की तुलना में थोड़ा सा छोटा प्रतीत हुआ। मुख्य भवन का शिलान्यास शायद सुमित्रा महाजन जी द्वारा किया गया है, क्योंकि मुख्य भवन के बाहर एक शिलापट पर उनके नाम का उल्लेख किया गया है। 
(मुख्य भवन जाने का रास्ता)
मुख्य भवन में अन्दर आते ही, एक बड़ा सा भवन में हमारा आगमन होता है। ये नए बने सभी नवोदयों में लगभग एक जैसा ही है। हालांकि इस हाल में श्रीमती एवं श्री महाजन (सुमित्रा महाजन जी से कोई संबंध नहीं) जी का छाया चित्र लगा हुआ दिखाई पड़ा। पूछने पर पता चला कि इन भद्रजनों ने नवोदय विद्यालय की सारी जमीन दान में दी है। इसी भवन में, विभिन्न बोर्ड परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के नाम के बोर्ड लगे हुए हैं। थोड़ी तुलना लेखक ने अपने समय के 10 वी एवम् 12 वी पास किए हुए विद्यार्थियों से भी की। 
पास ही में विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई चित्रों के लिए भी एक बोर्ड लगा हुआ था। लेकिन शायद कोरोना काल होने के कारण, इस बोर्ड को उतनी अच्छे तरीके से सजाया नहीं गया था। पास ही में चारों छात्रावास, यानि अरावली, नीलगिरी, उदयगिरी एवम् शिवालिक के नाम भी लिखे हुए थे जिनमे इन छात्रावासों में वर्तमान में रहने वाले लोगों की संख्या लिखी हुए थी। इस भवन के बाएं ओर कार्यालय, प्रधानाचार्य एवम् उप प्रधानाचार्य कक्ष थे एवम् दाहिने तरफ़ कक्षा 12वी के बच्चों के लिए कक्ष था। ठीक वैसे ही जैसे कि हमारे नवोदय में था, एवम् शायद ऐसा ही सभी नवोदय में रहता भी होगा। 
सामने की तरफ, दीवार में बनाए गए गोले एवम् उनसे झांकती फिजिक्स एवम् बायोलॉजी की लैब। प्रांगण के चारों तरफ बाहर की तरफ निकले हुए चार कमरे, ओर इन चारों कमरों के दोनों तरफ बने हुए दो दो गोले। 
प्रांगण को प्लास्टर किया गया था, पत्थर के वैसे ही छोटे छोटे टुकड़ों के द्वारा जो कि हमने कभी अपने स्कूल में देखे थे। ऐसा भी शायद अब हर एक नवोदय की पहचान बन गई है। 

मुलाकाते । 

1. स्कूल प्रांगण में घुसते ही सबसे पहली मुलाकात, स्कूल के चौकीदार से हुई। ये महोदय, पास ही के गांव पट्टन के रहने वाले हैं, स्थाई पद पर ये नहीं है परन्तु बहुत समय से इसी स्कूल में कार्यरत है। इनसे बात करते हुए मुझको अपने स्कूल के इरफान भैया की याद स्वतः ही आ गई। इन महोदय का नाम तो मैं गलती से भूल गया और काफी देर सोचने के बाद भी मैं याद नहीं कर पाया। मिलते ही, इन्होंने सबसे पहले मेरे आने का कारण पूछा एवम् प्रधानाचार्य जी से पूछने के उपरांत मुझे स्कूल देखने की आज्ञा दी एवम् मेरे साथ घूमे भी। स्वभाव से मुझे तो ये बहुत हंसमुख प्रतीत हुए, लेकिन स्कूल के बच्चों के विचार उनके बारे में शायद ऐसे न हों क्योंकि हम खुद अपने स्कूल के चौकीदार के बारे में ज्यादा अच्छे विचार नहीं रखते थे। खैर, ये महोदय मुझको स्कूल का भोजनालय, मुख्य भवन, एवम् छात्रावास के दर्शन कराने अपने साथ लेकर गए। स्कूल का भोजनालय तो बिल्कुल हमारे नवोदय के भोजनालय के समान ही प्रतीत हुआ। प्रवेश के लिए वही 4 रास्ते। 2 लड़कों के लिए एवम् दो लड़कियों के लिए। 
(हॉस्टल के अंदर का एक दृश्य, इंटरनेट से लिया हुआ ) 

2. स्कूल प्रांगण में दूसरी मुलाकात, स्कूल के उप प्रधानाचार्य जी से हुई। स्वभाव से बहुत हंसमुख जान पड़ते थे। अभी हाल ही में इस स्कूल में किसी अन्य स्कूल से स्थानांतरित होकर आए हुए हैं। छुट्टी के दिन भी काफी सजे संवरे से घूमते प्रतीत हुए। इन्होंने मेरे बारे में पूछा, और मैंने भी इनके बारे में जानकारियां इक्कठी की। स्कूल में चारों तरफ एक चक्कर लगाने के बाद वापिस इनसे मिलने आया और इनसे जाने के लिए आज्ञा ली। 

3. चौकीदार महोदय के साथ, भोजनालय के अंदर भी गया। यहां पर बच्चों के लिए खाना बनाने वाले महोदय से बात हुई। दोनों ही मध्यप्रदेश के ही रहने वाले हैं। दोनों ही हंसमुख स्वभाव के प्रतीत हुए। दोनों के बच्चे नवोदय से पासआउट हो चुके हैं एवम् वर्तमान में फार्मा से संबंधित किसी विषय में अध्ययनरत है। मैंने बताया कि हमारे नवोदय में मसूर दाल एवम् पनीर बहुत प्रसिद्ध हुआ करता था। उन्होंने बताया कि बेतुल नवोदय में राजमा सब्जी ज्यादा लोकप्रिय है। DOUBLING करने की छात्रों को प्रवृति को भी हंस कर टाल दिए। उत्तराखंड एवम् मध्यप्रदेश के नवोदय विद्यालयों DOUBLING शब्द का प्रयोग ठीक एक जैसे संदर्भ में प्रयोग होता है, प्रदर्शित करता है कि नवोदय वास्तव में देश को एक सूत्र में बांध देता है। 

4. वर्तमान में स्कूल में कक्षा 10 एवम् कक्षा 12 के बच्चो को DETENTION कक्षाएं चल रही थी। नवोदय से संबंध रखने वाले लोगों को इस शब्द का अर्थ ज्ञात होगा, ऐसा मुझे विश्वास है। कक्षा 12 के मानविकी संवर्ग के बच्चों से कुछ समय के लिए बात हुई। उन लोगों से मैंने थोड़ी देर बात की। अपना परिचय मैंने उनको नहीं दिया। वहीं एक उन्मुक्तता का आभास मुझे उनसे बात करने के बाद हुआ। बच्चों ने अपनी कक्षाओं के बारे में बताया। हालांकि हमारे समय के विपरीत ज्यादा आत्मविश्वास से भरे हुए बच्चे प्रतीत हुए। किसी भी बच्चे के पास छात्रावास के रंग वाली टीशर्ट नजर नहीं आ रही थी। शायद बढ़ते हुए फैशन का प्रभाव यहां विद्यालय में भी दिखाई पड़ रहा था। ज्यादा देर बात लेकिन बच्चों से नहीं हो समयभाव के कारण। 

विद्यालय के छात्रावास डबल स्टोरी बिल्डिंग के रूप में थे। हालांकि बनावट पूरी तरह सभी नवोदय विद्यालय के जैसे ही थी। हालांकि एक अहसास यह भी हुआ की उपलब्ध स्थान का प्रयोग समुचित रूप से नहीं हुआ है। सारे ही भवनों को स्कूल के सामने वाली जगह में बना दिया गया है। शिक्षक आवास बिल्कुल छात्रावास के नजदीक बना दिए गए हैं। शिक्षक लोगों को भी शायद थोड़ी असहजता छात्रावास के नजदीक रहने से होती होगी। 

हॉस्टल के अंदर बने वार्डन के आवास के चारो तरफ भी बाउंड्री वॉल नहीं बनाई गई है। वार्डन को भी शायद बहुत ज्यादा असहजता इस तरह छात्रों के बीच रहने से आती होगी। 
खैर शाम बहुत घिर आयी थी। दोबारा फिर से इस नवोदय का भ्रमण करूंगा लेकिन इस बार किसी बच्चे के साथ आना ज्यादा अच्छा होगा। ऐसी सोच के साथ मैंने नवोदय से घर की तरफ वापसी शुरू की। 

इति सिद्धम। 

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