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मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?

आज शनिवार का दिन था। मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ सामान खरीदने के लिए बाजार का रुख किया। 
सामान खरीदने के दौरान मुझको एक काका दिखाई दिए। काका मेरी कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी का काम करते हैं। मैंने ध्यान दिया कि काका ने कई प्रकार की दाले, खाना बनाने का तेल इत्यादि सामान खरीदे हुए थे। 
कंस्ट्रक्शन कंपनियों में शनिवार का दिन अमूमन सैलरी डे के रूप में देखा जाता है। शनिवार के दिन, हफ्ते भर के हिसाब किताब का लेखा-जोखा होता है एवं हफ्ते भर की सैलरी मजदूरों को कैश के रूप में दी जाती है। मजदूरों के लिए शनिवार का दिन खुशियों को लेकर आता है। हफ्ते भर की थकावट को मिटाने के लिए कुछ मजदूर, मजदूरी के इन पैसों से नशे इत्यादि का सेवन भी कर लेते हैं और खैर घर का जरूरी सामान तो खरीदते ही हैं। नशा यहां पर इतनी गलत नजरों से नहीं देखा जाता है। ऐसा करना एक आम बात है। 

काका को देखते ही मेरे दिमाग में कुछ ख्याल आने लगे। सरकारी विभागों में बनने वाली इन इमारतों से विभिन्न विभागों के लोग, भिन्न भिन्न कारणों से जुड़े हुए हैं। इन इमारतों का उपयोग करने वाले विभागों के लोग, जिनको की यूजर भी कहा जाता है, फीता काटने के लिए लालायित रहते हैं। फीता काटने के दौरान खींची गई यह फोटो, वर्षों तक ऑफिसों की शोभा बढ़ाती है। 
इस कार्य में जुड़ी हुई दूसरी संस्थाएं ओर अलग-अलग कारणों से इन कार्यों में रुचि रखती हैं। कितने लोगों की एसीआर इन कार्यों पर जुड़ी हुई होती है। कार्य को करने वाले ठेकेदार एवं कंपनियां केवल और केवल अधिकतम लाभ कमाने के उद्देश्य से इन कार्यों से जुड़ी रहती हैं। इन कंपनियों के कामों पर निगरानी रखने वाली संस्थाओं में कार्यरत लोग, ना कहे जाने वाली कुछ वजहों से,  इन कार्यों में रुचि रखते हैं। 
बनाई गई इन बिल्डिंग के बारे में यही कार्यरत लोग अपनी अगली पोस्टिंग में बखान करते हैं, एवं अपनी कार्यकुशलता को बढ़ा चढ़ा कर दूसरे लोगों को समझाते हैं। (कृप्या अन्यथा न लें) 
परंतु जो यह मजदूर वर्ग है, यह इन कार्यों में केवल और केवल निस्वार्थ भाव से सेवा में ही लगा हुआ है। कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में जो मजदूर वर्ग है वह बाकी इंडस्ट्री के तुलना में सबसे कम वेतन पाता है। ऐसे लोग जिनको थोड़ा दिमाग चलाना आता है वह कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में आकर सीमेंट में अपने हाथ गंदे नहीं करना चाहते। लोग दूसरी इंडस्ट्रीज में जाकर सफेद कपड़े पहनना ज्यादा पसंद करते हैं। अब चूंकि इस तरह के लोगों की अधिकता हो ही जाती है तो इसी कारणवश इस इंडस्ट्री में वेतन दूसरी इंडस्ट्रीज की तुलना में कम रहता है। 
विभिन्न बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने वाले प्रोजेक्ट में लगे इन मजदूरों को ना तो वेतन ज्यादा मिलता है और ना ही कोई एसीआर कि उनको चिंता रहती है। ठेकेदारों की तरफ से लगे सुपरवाइजरी लोग इन लोगों से कभी सीधे मुंह बात नहीं करते। ठेकेदार द्वारा गलत निर्देश दिए जाने के बावजूद, निगरानी रखने वाले संस्थाओं के लोग भी इन्हीं लोगों को जाकर गालियां देते हैं। गलती करना ठेकेदार चाहता है लेकिन मौके पर पकड़े जाने के कारण गलतियां हमेशा इन्हीं लोगों की होती है। गलत काम करते हुए पकड़े जाने पर इन लोगों को सबसे ज्यादा गालियां पड़ती हैं। 
कार्य के घंटों के लिए इनके लिए कोई नियम नहीं है। दिन में भी हमारे साथ खड़े हैं और शाम को भी हमारे साथ खड़े हैं। इनके शरीर में थकावट हो ही नहीं सकती। ये लोग कहीं घूमने नहीं जाते। सभी लोगों की उनसे अपेक्षा रहती है कि इनका एनर्जी लेवल सुबह के 8:00 बजे भी उतना ही रहे और शाम के 5:00 बजे भी उतना ही रहे। जिस तरह हम लोगों का मन किसी दिन कोई भी कार्य करने का नहीं होता इस तरह के व्यवहार की इनसे अपेक्षा भी नही की जा सकती और अगर ये ऐसी किसी छुट्टी के बारे में सोच भी लें तो इसे अपराध की श्रेणी में ही गिना जाता है।  इनको आज भी काम करना है, कल भी काम करना है, इस महीने भी काम करना है। दूसरे महीने भी काम करना है। 365 दिन काम करना है। 
बुरा काम करने पर इन लोगों को सब की गालियां खानी है। अच्छा काम करने पर अप्रिशिएशन दूसरे लोगों को लेना है। प्लास्टर खराब होने पर एक मजदूर को गाली दी जा सकती है लेकिन प्लास्टर अच्छा होने पर उसी मजदूर का कोई महत्व नहीं है। इन लोगों में कोई अहंकार नहीं है, कोई ईगो नहीं है। इन लोगों को न सिर्फ काम करना है बल्कि आने वाले लोगों द्वारा दी गई गालियों को सुनना भी है एवं पलट कर जवाब भी नहीं देना है। 

कार्य की समाप्ति पर, इन गगनचुंबी इमारतों को देखने के लिए, फीता काटने के लिए दूसरे लोग आ जाते हैं। इन कार्यों से जुड़े हुए मजदूर लोगों को ऐसा ही कोई दूसरा जंगल दे दिया जाता है। उसी जंगल में गर्मी धूप बरसात में यह मजदूर लोग फिर से शुरू हो जाते हैं। इनके कंधों पर न सिर्फ अपने परिवार का बोझ रहता है बल्कि लोगों की एसीआर को ठीक करने का बोझ भी ये अपने कंधों पर ढोते हैं। जीवन भर यह लोग इसी चक्र में चलते रहते हैं। यही शायद जीवन की विडंबना भी है। 

मजदूरों के जीवन के यथार्थ को देखकर ही शायद रामधारी सिंह दिनकर ने पंक्तियां लिखी थी : 

मैं मजदुर हूँ मुझे देवों की बस्ती से क्या!
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाये,

अम्बर पर जितने तारे उतने वर्षों से, 
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सवारा;
धरती को सुन्दर करने की ममता में,
बिता चुका है कई पीढियां वंश हमारा.
अपने नहीं अभाव मिटा पाए जीवन भर, पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ;

युगों-युगों से इन झोपडियों में रहकर भी, औरों के हित लगा हुआ हूँ महल सजाने.
ऐसे ही मेरे कितने साथी भूखे रह,
लगे हुए हैं औरों के हित अन्न उगाने;

इति सिद्धिम। 

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