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Showing posts from 2022

क्यों आमला (मध्यप्रदेश) में मिले मुजफ्फरनगर वासी ?

आमला से गांव देहात की तरफ जाते हुए मुझे अचानक ही एक घाना दिखाई दिया। किसी छोटे स्तर पर बनाए गए चीनी मिल को घाना, इस क्षेत्र में कहा जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा पंजाब के कुछ क्षेत्रों में इसी स्तर के चीनी मिलों को चरखी के नाम से जाना जाता है। अचानक ही मेरी नजर उक्त घाने में काम करने वाले एक व्यक्ति पर पड़ी। इस व्यक्ति ने कुर्ता पायजामा पहना हुआ था। कुर्ते पजामे को पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजकीय पोशाक कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग हर एक व्यक्ति कुर्ते पजामे की पोशाक ही धारण करके रहता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहने जाने वाले इन कुर्ते पजामे की बनावट भी लगभग एक जैसी रहती है। भले ही कोई आम आदमी हो, नेता हो, अमीर हो, गरीब हो, परंतु, कुर्ते पजामे की बनावट लगभग सभी व्यक्तियों की एक जैसी रहती है। हालांकि कपड़ों के रेशे,  शत प्रतिशत सभी व्यक्तियों के अलग-अलग पाए जाएंगे।  खैर छोड़िए, अब आज की बात को आगे बढ़ाते हैं। इस व्यक्ति द्वारा पहने गए कुर्ते पजामे की बनावट को देखते ही मैं समझ गया कि यह व्यक्ति सहारनपुर या इसके आसपास के ही किसे जिले से संबं...

मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?

आज शनिवार का दिन था। मैंने अपनी धर्म पत्नी के साथ सामान खरीदने के लिए बाजार का रुख किया।  सामान खरीदने के दौरान मुझको एक काका दिखाई दिए। काका मेरी कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी का काम करते हैं। मैंने ध्यान दिया कि काका ने कई प्रकार की दाले, खाना बनाने का तेल इत्यादि सामान खरीदे हुए थे।  कंस्ट्रक्शन कंपनियों में शनिवार का दिन अमूमन सैलरी डे के रूप में देखा जाता है। शनिवार के दिन, हफ्ते भर के हिसाब किताब का लेखा-जोखा होता है एवं हफ्ते भर की सैलरी मजदूरों को कैश के रूप में दी जाती है। मजदूरों के लिए शनिवार का दिन खुशियों को लेकर आता है। हफ्ते भर की थकावट को मिटाने के लिए कुछ मजदूर, मजदूरी के इन पैसों से नशे इत्यादि का सेवन भी कर लेते हैं और खैर घर का जरूरी सामान तो खरीदते ही हैं। नशा यहां पर इतनी गलत नजरों से नहीं देखा जाता है। ऐसा करना एक आम बात है।  काका को देखते ही मेरे दिमाग में कुछ ख्याल आने लगे। सरकारी विभागों में बनने वाली इन इमारतों से विभिन्न विभागों के लोग, भिन्न भिन्न कारणों से जुड़े हुए हैं। इन इमारतों का उपयोग करने वाले विभागों के लोग, जिनको की यूजर भी कहा जाता है,...

क्या हुआ दिल्ली से वापसी की यात्रा के दौरान ?

इस बार दीपावली की छुट्टियां बहुत लंबी एवं बहुत अच्छी भी रही।  हमारी जो ये पीढ़ी है,वो हर काम जल्दी करने में बहुत यकीन रखती है। मैं भी इस तरह की सोच से अछूता नहीं हूं। हमारी इस पीढ़ी को बहुत ज्यादा योजना बनाकर किसी  कार्य को करना बिलकुल पसंद नहीं है। इसी तरह अल्प अवधि में बिना सुचारू योजना बनाए की गई यात्रा का खामयाजा मुझे भी भुगतना पड़ा।   आगे की कुछ पंक्तियों में इस अल्प अवधि में बिना किसी अच्छी योजना के द्वारा की गई मेरी यात्रा में मुझे क्या कठिनाई सहनी पड़ी एवं मैने इससे क्या सीख ली, यही कुछ आगे बता रहा हूं।  संदर्भ   मेरा पुश्तैनी घर उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में हैं। यह जिला, उत्तराखंड राज्य  के हरिद्वार एवं देहरादून जिलों में एवं हरियाणा राज्य के यमुनानगर एवं करनाल जिलों से मिलता हुआ है। उत्तरप्रदेश के उत्तरी कोने पर यह जिला स्थित है।  दिल्ली से चलकर देहरादून को जाने वाली गाड़ियां, इसी जिले से होकर जाती हैं। यह रेलवे लाइन इस दिशा में देहरादून एवं ऋषिकेश में जाकर समाप्त हो जाती है।  इसके अलावा कुछ गाड़ियां, दिल्ली से चलकर, सहारनपुर होते हु...

सहारनपुर में लगातार कम होती बारिश पर विचार।

सावन का महीना चल रहा है, लेकिन सहारनपुर जिले में लगातार कम होती बारिश एक विचारणीय प्रश्न बनता जा रहा है। कई लोगों से बात हुई एवं लोगों से इसके कारण जानने का प्रयास किया। लोगों से प्राप्त ऐसे ही कुछ कारणों को आपके समक्ष प्रस्तुत है।  1. सहारनपुर जिले के भूगोल विषय के छात्रों से इस बारे में बात हुई। भूगोल में स्नातक की पढ़ाई कर रहे सोनू जी ने बाइक से उतरते हुए हमे विषय की गहराई से अवगत कराया। महोदय पैंट एवं शोर्ट्स के बीच की कोई चीज पहने हुए थे। बाइक पर बैठे हुए यह चीज शोर्ट्स बनने के लिए घुटनो तक जाकर शोर्ट्स बनने की तरफ लालायित थी। सोनू जी ने बाइक से उतरते ही अपनी पूरी शारीरिक क्षमता का प्रयोग करते हुए इसे नीचे की तरफ खींचा एवं वापिस से इसको पैंट बनने की तरफ बढ़ा दिया। क्षेत्र में अपनी धुली हुई मोजों को लोगों को दिखाने का क्रेज इस नए बने फैशन की वजह है।  खैर सोनू जी ने क्षेत्र में निम्न दाब का क्षेत्र ठीक से न बन पाना, घटती हुई बारिश का कारण बताया। सोनू जी ने बताया की आर्द्र हवाएं जो पानी लेकर अपने साथ चलती है वो निम्न दाब के क्षेत्र की तलाश में आगे बढ़ती हैं। जैसे ही ये हवाएं...

क्षेत्र में सावन के महीने में मिलने वाली घेवर की मिठाई पर एक टिप्पणी।

सहारनपुर में इस बार सावन के दौरान जाना हुआ। कई अलग अलग दुकानों से अलग अलग कारणों से घेवर इस बार खरीदना पड़ा। मुख्यत छः अलग अलग जगह से मैंने इस बार घेवर खरीदा। इन्ही जगहों से खरीदे गए घेवर का एक रिव्यू आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। 6. छटवे नंबर पर है, सहारनपुर घंटाघर पर स्थित जनता स्वीट्स का घेवर। घंटा घर पर कई सारी दुकानें स्थित हैं। बहुत ही महंगी मिठाईयां इन दुकानों द्वारा बेची जाती रही है। लगभग क्वालिटी एवं रेट में सभी दुकानें एक ही जैसी है। इस बार सबसे पहले मैंने इसी दुकान से घेवर खरीदा। घेवर का रेट इस दुकान पर 700 रूपये किलो के करीब था। इतना ज्यादा रेट होने के बावजूद भी ये लोग घेवर का का जो ओरिजिनल स्वाद होता है, उसको मेंटेन नही कर पा रहे हैं। घेवर में खुशबू देने के लिए जबरदस्ती कुछ नई चीजों को डाला जा रहा है जिनसे की घेवर की ओरिजिनेलिटी नही रह गई है। चासनी के नाम पर अब इनके यहां घेवर पर चॉकलेट भी इस्तेमाल होनी शुरू हो गई है। सिर्फ सावन में मिलने वाली घेवर जैसी मिठाई को, साल भर मिलने वाली चॉकलेट मिलाकर, बर्बाद करने की कवायद इस समय, घंटाघर पर स्थित सभी दुकानों प...

छोटा महादेव मंदिर सारणी

आज छोटा महादेव मंदिर जाने का मन हुआ। मंदिर बैतूल जिले की सारणी तहसील के पास स्थित है। मौसम बहुत अच्छा है। बारिश आने की संभावना लगभग न के बराबर है, हालांकि जिले को इस समय बारिश की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। जिले में इस बार पूर्व की अपेक्षा बहुत कम बारिश दिखाई पड़ रही है।  रास्तों में ट्रैफिक लगभग न के बराबर है।  यात्रा का पहला पड़ाव एक चाय पीने के लिए बोरी खुर्द नाम के गांव पर रहा। यहां चौराहे से मुझे मुख्य सड़क जो कि आमला को छिंदवाड़ा जिले को जोड़ती है, से अलग होना था, एवं सारणी मार्ग पर मुड़ना था। चौराहे पर कई सारी दुकानें स्थित हैं। इन्ही में से एक दूकान पर चाय पीने का मन हुआ। चाय कोयले पर बनाई जा रही है। चाय की कीमत पांच रूपये है। चाय बनाने के लिए प्रयोग की जा रही अंगीठी का फोटो लेने का मन हुआ, तो नीचे आपको भी दिखा रहे हैं।   

नागपुर यात्रा

आज दिनाक १५ जून २०२२ को एक बार फिर से नागपुर जाने का अवसर मिला है। इसी यात्रा के दौरान की कुछ टिप्पणियां प्रस्तुत की जा रही है । १९. पहला चाय ब्रेक।  १८. महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश। नागपुर अभी  लगभग ६० किलोमीटर ही दूर है।  १७. जामसांवली जाने वाले रास्ते को अभी अभी पास किया। इस कस्बे में एक हनुमान मंदिर स्थित है। इस मंदिर की लोकप्रियता महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश के जिलों में बहुत ज्यादा है। मैंने लेकिन अभी तक इस मंदिर के दर्शन नहीं किए हैं।  १६. मामा का ढाबा नाम से एक ढाबा दिखाई पड़ा। अजीब नाम है। अगर ढाबा मामा का है, तो क्या भांजा चला रहा है ? और अगर भांजा चला रहा है तो अपने नाम से क्यों नहीं बनाया ? मामा का नाम क्यों दिया ?  १५. रास्ते में नए नए पेट्रोल स्टेशन बन रहे है । साफ है कि अभी आने वाले कुछ वर्षो में पेट्रोल वाहनों को संख्या में उतनी भी कमी नहीं आएगी। हां लेकिन यही पेट्रोल पंप को आसानी से इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन में बदला जा सकता है।  १४. मोर डोंगरी एवं मोहगांव।  १३. गढ़खापा।  १२. फिर नीलकंठ।  ११. पांढुर्णा कस्बे के बाद फिर ...

छोटा सा आशियाना।

झर झर......... चिक चिक...... फिर से वही आवाज ..... लगता है फिर से सुकन्या का अभ्यास दरवाजे से बाहर शुरू हो गया है ! उसे देखना तो चाहती हूं , लेकिन कही वो डर ना जाए यही सोच के अंदर बैठी हूं । आप सब सोच रहे होंगे कि ये सुकन्या है कोन? ये है एक प्यारी सी , छोटी सी गिलहरी जिसने अभी अभी हमारे रसोई के बाहर छोटे से छज्जे पर अपना आशियाना बना लिया है । वो है इतनी प्यारी और शर्मीली सी,कि उसका नाम मैंने सुकन्या रख दिया है। कुछ दिनों से देख रही हूं कि दिन भर दौड़ दौड़ कर फूस जैसा कुछ ले कर बगीचे से ऊपर छत की तरफ जाती है जिस से मुझे समझ ही न आए की ये सब सामान वो जमा कहां कर रही हैं  फिर पूरा चक्कर लगा कर छज्जे तक आती होगी । अब समझ आया कि ये सब तैयारी हो रही थी एक छोटे से गिल्लू गिलहरी की।। जी हां अभी आशियाने में एक छोटा गिलहरी भी आ गया है , इसीलिए पास जाकर नही देखा की कही वह अपने बच्चे को लेकर असुरक्षित महसूस न करें । बच्चा अभी बहुत छोटा हैं इसीलिए बाहर नही आ रहा था, आप जानकर हैरान होंगे की गिलहरी की नजरे हमसे बहुत तेज होती हैं लेकिन गिलहरी का बच्चा देख भी नहीं सकता जन्म के कुछ दिनो...

सहारनपुर, 16 मई 2022

आज दिनाक 16 मई 2022 को अमर उजाला सहारनपुर देहात के एडिशन में नीचे दिए गए दो अलग अलग समाचार पढ़ने को मिले। ये समाचार बहुत दिनो से मेरे दिमाग में चल रहे विचारों को ही पुष्ट करते हैं। आगे बढ़ने से पहले आग्रह है कि इन समाचारों पर गौर करें : ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत लंबे समय से देखा जा रहा है कि बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति पर लोग बहुत आसानी से विश्वास कर लेते हैं। अगर कोई बाहरी व्यक्ति गांव में आकर अपनी कोई समस्या बताकर कुछ आर्थिक सहायता का आग्रह इनसे करे, तो ये लोग सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। किसी की सहायता करना गलत नही है, लेकिन ऊपर दी गई खबरों से स्पष्ट है कि समाज आज कल इतना भी अच्छा नही रह गया है।  1. सबसे पहली बात इलाज के नाम पर झोला छाप डॉक्टर्स पर विश्वास करना या किसी तंत्र विद्या पर विश्वास करना। जिस डॉक्टर या झोला छाप पर आप आंख मूंद कर विश्वास कर रहे हैं वो बहुत ही गलत आदमी हो सकता है। बहुत सी बीमारियां सिर्फ अच्छा भोजन एवं अच्छी दिनचर्या से सुधारी जा सकती हैं। अच्छा भोजन महंगा भी नही है। समोसा ज्यादा महंगा पड़ता है, जबकि उतने ही रुपए में खरीदे गए ...

मोरन ढाणा का आम का एक बाग

मोरन ढाणा का आम का एक बाग।  आज 2022 मई की तेरह तारीख को बैतूल जिले के मोरण ढाणा गांव के एक आम के बाग में घूमने का मौका मिला। यह गांव, आमला तहसील में एवं तहसील मुख्यालय से, उत्तर दिशा में लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।  आमला तहसील से उत्तर की तरफ का क्षेत्र पठारी एवं पथरीली जमीन से बना हुआ है। भूजल स्तर इस दिशा में काफी नीचे है और इसी वजह से इस दिशा में फसल उतनी अच्छी पैदावार शायद नहीं देती है।  आमला से बैतूल जाते हुए रास्ते में, पानी की कमी से सूखे हुए से खेतों के बीच आम के दो बगीचे कौतूहल का विषय रहते हैं। हमेशा से मन था की इनमे से एक बगीचे को जाकर देखा जाए, लेकिन बिना किसी परिचय के किसी के बगीचे में जाना भी एक दम से अच्छा नहीं लगता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चारों तरफ आम के बगीचों की भरमार है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने के कारण ये दो आम के बगीचे मेरा ध्यान अनायास ही अपनी तरफ खींचते थे। संयोग से पता चला की एक बगीचा मेरे ही एक स्थानीय मित्र के परिवार का है। मैंने अपने मित्र से बगीचा देखने का आग्रह किया जिसको की उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया एवं...

लैंप एवं डिब्बी का दौर

लैंप एवं डिब्बी का दौर।  1990 के दशक में होश संभालने वाले बच्चों का बचपन शायद ही लैंप एवं डिब्बी के नाम से अछूता रहा हो। हो सकता है अलग अलग स्थान पर इन दोनो ही प्रकाश के स्रोतों को अलग अलग नाम से बुलाया जाता हो, लेकिन उस समय के बच्चों को पढ़ाई करने के लिए ये एक मुख्य स्त्रोत हुआ करते थे। ऐसे पाठकों को जिन्होंने इन दोनो वस्तुओं के बारे मे नही सुना हो, उनके लिए दो चित्र नीचे लगा रहा हूं, एवं इन्ही दोनो चीजों से जुड़ी कुछ खट्टी मीठी बातें इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूं।  उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले के छोटे से गांव में, जहां मैं रहता हूं, वहां पर एवं उसके आसपास के गांव में रात के समय, प्रकाश का मुख्य स्त्रोत हुआ करते थे : लालटेन, लैंप एवं डिब्बी। ये तीनों ही इसी क्रम में किसी परिवार की स्मृद्धि को भी दर्शाया करते थे। ज्यादा स्मृद्ध परिवारों के पास लालटेन हुआ करती थी, एवं कुछ परिवार जो लैंप खरीदने को दकियानूसी मानते थे, वो पुरानी कांच की बोतलों का प्रयोग करके डिब्बी बना लिया करते थे। वैसे यहां पर ये भी बताना जरूरी है की अधिकांश परिवारों में दो से तीन लैंप व बा...

मुरमुरे नमकीन की वो यादें।

मुरमुरे नमकीन की वो यादें।  कल आमला की साप्ताहिक बाजार में जाना हुआ। साप्ताहिक बाजार में अलग अलग तरह की ताजी हरी सब्जियों को खरीदा जा सकता है। कुछ व्यापारी और कुछ किसान भी स्वयं आकर इन साप्ताहिक बाजारों में ताजी सब्जियों को बेचने आते हैं।  ऐसे ही घूमते घूमते एक दुकान पर, मेरी ही उम्र के एक व्यापारी को मुरमुरे नमकीन इत्यादि बेचते हुए देखा। अनायास ही खरीदने का मन हुआ। एक पैकेट मुरमुरे और कुछ नमकीन को घर के लिए खरीद लिया। लेकिन इन नमकीन और मुरमुरे के पैकेट के साथ ही बचपन की कुछ यादों को भी पॉलीथीन में बांध कर घर ले आया।  बचपन में एक संयुक्त परिवार में रहने के कारण, गांव की किसी भी दुकान से कुछ भी खरीदने की जैसे मनाही सी रहा करती थी। गांव में किसी भी सामान को खरीदने से रोकने के लिए घर वालों के द्वारा हमारे बाल सुलभ मस्तिष्क में अच्छे एवं बुरे बच्चों की इमेज, दिन प्रतिदिन के प्रोपोगंडा द्वारा उकेर दी गई थी। अच्छे बच्चों जैसा बने रहने की नैतिक जिम्मेदारी भी हमारे कंधो पर आ गई थी, जिसे की हम पूरे बचपन भर अपने कंधों पर धोते रहे और हमेशा टॉफी इत्यादि जैसी लक्जरी चीजों ...

घर के सामने लगा अमरूद का पेड़

घर के सामने लगा अमरूद का पेड़ बैतूल में घर के सामने एक अमरूद का पेड़ लगा हुआ है। बहुत थका हुआ सा प्रतीत हो रहा है। थोड़ा बीमार भी है। इसकी सेवा शायद हम लोग ठीक से नहीं कर पा रहे हैं।  पिछले कितने महीनों से ये एक नए जीवन के लिए प्रयासरत है। नई पत्तियां आ तो रही हैं लेकिन बहुत धीमे धीमे ही इन पत्तियों में बढ़ोतरी दिखाई दे रही है।  तना कई जगह से खोखला हो चुका है और जगह जगह से एक काले रंग का दृव्य तने से निकलता हुआ प्रतीत हो रहा है।  आने वाले कुछ महीनो में किसी जानकार आदमी से पूछ कर इस पेड़ की दवा दारू करने का प्रबंध करने का प्रयास करूंगा।  कितने लोगों को इस पेड़ ने मीठे मीठे अमरूद खिलाए होंगे, लेकिन अब शायद अपनी बीमारी की वजह से बेबस है। इसी बीमारी के कारण शायद पिछली बार लगे हुए सारे ही अमरूद रोगग्रस्त थे। दवा दारू करने के पश्चात शायद अमरूद का पेड़ दुरुस्त हो जाए और मीठे मीठे अमरूद मिलने हमे फिर से शुरू हो जाए। बीमारी के दौरान के फोटो साझा कर रहा हूं। (अमरूद का खोखला हुआ तना) (कई महिनों से बहुत कम आई हुई पत्तियां)  (पेड़ के तने स...

जिला सहारनपुर विधान सभा (लाइव अपडेट)

जिला सहारनपुर विधान सभा लाइव अपडेट। 14.#UPElectionWithTV9 #Saharanpur पुलिसकर्मीं पर एक पार्टी के पक्ष में वोट डलवाने का आरोप, ड्यूटी से हटाया गया। नगर सीट के शारदा नगर के एक बूथ पर पुलिसकर्मी द्वारा एक पार्टी पक्ष में वोटिंग कराने को लेकर हंगामा, SP सिटी ने ड्यूटी से हटाया। #ElectionsWithTV9 | @akashtoma | @ceoup | https://t.co/TvZzXOi85o 13. #Saharanpur: सहारनपुर में 1:00 बजे तक 44.03 प्रतिशत मतदान बेहट में 45 प्रतिशत नकुड़ में 48.33 प्रतिशत नगर में 40.38 प्रतिशत देहात में 43.50 प्रतिशत देवबंद 44 प्रतिशत रामपुर मनिहारान 44.17 प्रतिशत गंगोह 42.82 प्रतिशत #UPElections #Election2022 #Vote #SecondPhaseVoting 12.सहारनपुर जिले की विधानसभा बेहट-1, बूथ नंबर- 403 पर तैनात मतदान कर्मी महिलाओं से यह कह कर वोट नहीं करने दे रही हैं कि आपका मतदान हो चुका है। गंभीर समस्या है,कृपया चुनाव आयोग और जिला प्रशासन संज्ञान लेते हुए निष्पक्ष मतदान कराना सुनिश्चित करें @ECISVEEP @Uppolice @akashtomarips,जी थाना प्रभारी/सेक्टर मजिस्ट्रेट व अन्य पुलिस बल मौके पर मौजूद है।महिला कर्मियो द्वारा महिलाओ को मतदान कर...